
UP Samvida Employee News: उत्तर प्रदेश के अलग-अलग सरकारी विभागों और कार्यालय में लाखों संविदा कर्मचारी कार्यरत है , उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के निजीकरण को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने दावा किया है कि यदि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों (Purvanchal Vidyut Nigam & Dakshinanchal Vidyut Nigam) का निजीकरण किया गया, तो लगभग 16500 नियमित और 60000 संविदा कर्मचारियों को नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है।
संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि बिजली कर्मचारी और उपभोक्ता, दोनों ही इस व्यवस्था के मुख्य हितधारक हैं। ऐसे में सरकार को निजीकरण से पहले इन दोनों पक्षों की राय लेना जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस फैसले से न केवल कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय होगा, बल्कि बिजली व्यवस्था (Electricity System) भी अस्थिर हो सकती है।
कर्मचारियों का मानना है कि निजीकरण से घटेगा रोजगार, बढ़ेगी अस्थिरता
बिजली कर्मचारियों का मानना है कि निजीकरण के बाद बड़ी संख्या में इंजीनियरों और तकनीकी कर्मचारियों को रिवर्शन (Reversion) का सामना करना पड़ेगा , कई को कम वेतन पर फिर से संविदा पर रखा जा सकता है। इससे न केवल नौकरी की सुरक्षा खत्म होगी बल्कि पेंशन, बीमा, और अन्य सुविधाओं पर भी असर पड़ेगा।
राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा
संघर्ष समिति ने स्पष्ट कहा है कि जब तक निजीकरण का प्रस्ताव वापस नहीं लिया जाता, तब तक राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा। समिति ने यह भी मांग की है कि नियामक आयोग को कर्मचारियों की बात सुननी चाहिए, ताकि कोई भी फैसला एकतरफा न हो।
उपभोक्ता परिषद के 6 सवाल , क्या निजी कंपनियां जनता का हित देखेंगी ?
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने भी निजीकरण पर गंभीर सवाल उठाए हैं। परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने सरकार से छह अहम सवाल पूछे हैं—
- उपभोक्ताओं की ₹33,122 करोड़ रुपये की बकाया राशि निजीकरण के बाद कौन वसूलेगा?
- क्या निजी कंपनियां किसानों को मुफ्त बिजली (Free Electricity) देती रहेंगी?
- क्या सरकार निजी कंपनियों को सब्सिडी देने को तैयार है?
- सामाजिक योजनाओं का भविष्य क्या होगा?
- क्या पांच साल तक बिजली दरें नहीं बढ़ेंगी, इसका लिखित आश्वासन मिलेगा?
- आखिर टोरेंट कंपनी द्वारा वसूले गए ₹2200 करोड़ रुपये क्यों नहीं लौटाए गए?
परिषद का कहना है कि अगर सरकार वास्तव में पारदर्शिता चाहती है, तो उसे एक स्वतंत्र उच्चस्तरीय समिति बनाकर सभी पक्षों की राय लेनी चाहिए।
निजीकरण से बढ़ेगा आर्थिक दबाव, घटेगा भरोसा
जानकारों का कहना है कि बिजली वितरण कंपनियों का निजीकरण उपभोक्ताओं के लिए महंगी बिजली और कर्मचारियों के लिए नौकरी असुरक्षा लेकर आ सकता है। निजी कंपनियों का मुख्य उद्देश्य मुनाफा होता है, जबकि सरकारी कंपनियों का लक्ष्य सेवा देना होता है।
इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करना चाहिए। पहले यह देखा जाए कि निजीकरण से उपभोक्ताओं और कर्मचारियों दोनों के हित कैसे सुरक्षित रह सकते हैं।
Note – दी गई जानकारी सोशल मीडिया पर आधारित है जानकारी की पुष्टि संबंधित विभाग और परिषद की आधिकारिक वेबसाइट से अवश्य करें। पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी निर्णय से पहले आधिकारिक सरकारी अधिसूचना या प्रेस विज्ञप्ति की पुष्टि अवश्य करें।